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"बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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बीती विभावरी जाग री !
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बीती विभावरी जाग री!
          अम्बर पनघट में डुबो रही-
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          तारा-घट ऊषा नागरी ।
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खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
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अम्बर पनघट में डुबो रही
किसलय का अंचल डोल रहा,
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तारा-घट ऊषा नागरी!
          लो यह लतिका भी भर ला‌ई-
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          मधु मुकुल नवल रस गागरी ।
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अधरों में राग अमंद पिए,
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खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
अलकों में मलयज बंद किए-
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किसलय का अंचल डोल रहा
          तू अब तक सो‌ई है आली !
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लो यह लतिका भी भर ला‌ई-
          आँखों में भरे विहाग री
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मधु मुकुल नवल रस गागरी
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अधरों में राग अमंद पिए
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अलकों में मलयज बंद किए
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तू अब तक सो‌ई है आली
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आँखों में भरे विहाग री!
 
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21:51, 8 जुलाई 2013 का अवतरण

बीती विभावरी जाग री!

अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी!

खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर ला‌ई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी

अधरों में राग अमंद पिए
अलकों में मलयज बंद किए
तू अब तक सो‌ई है आली
आँखों में भरे विहाग री!