भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक लड़का / इब्ने इंशा

3 bytes added, 05:19, 9 जुलाई 2013
खै़र महरूमियों के वो दिन तो गए
आज मेला लगा है इसी शान से
आज चाहूं चाहूँ तो इक-इक दुकां मोल लूंलूँआज चाहूं चाहूँ तो सारा जहां मोल लूंलूँ
नारसाई का जी में धड़का कहां ?
पर वो छोटछोटा-सा अल्हड़-सा लड़का कहां कहाँ ?
</poem>
नारसाई=असमर्थता
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,103
edits