भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बेकार पड़ती चीज़ें / संजय कुंदन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन }} {{KKCatKavita}} <poem> वह जो मन की च...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:07, 13 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

वह जो मन की चहचहाहट पर गुनगुनाता था
मन की लहरों में डूबता-उतराता था
पकता रहता था मन की आँच में
वह जो चला गया एक दिन
मन के घोड़े की रास थामे
साँवले बादलों में न जाने कहाँ
वह मैं ही था

विश्वास नहीं होता
यह इसी जनम की बात है।