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"न वापसी है जहाँ से वहाँ हैं सब के सब / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर
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न वापसी है जहाँ से वहाँ हैं सब के सब | न वापसी है जहाँ से वहाँ हैं सब के सब | ||
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ज़मीं पे रह के ज़मीं पर कहाँ हैं सब के सब | ज़मीं पे रह के ज़मीं पर कहाँ हैं सब के सब | ||
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कोई भी अब तो किसी की मुख़ाल्फ़त में नहीं | कोई भी अब तो किसी की मुख़ाल्फ़त में नहीं | ||
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अब एक-दूसरे के राज़दाँ हैं सब के सब | अब एक-दूसरे के राज़दाँ हैं सब के सब | ||
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क़दम-कदम पे अँधेरे सवाल करते हैं | क़दम-कदम पे अँधेरे सवाल करते हैं | ||
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ये कैसे नूर का तर्ज़े-बयाँ हैं सब के सब | ये कैसे नूर का तर्ज़े-बयाँ हैं सब के सब | ||
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वो बोलते हैं मगर बात रख नहीं पाते | वो बोलते हैं मगर बात रख नहीं पाते | ||
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ज़बान रखते हैं पर बेज़बाँ हैं सब के सब | ज़बान रखते हैं पर बेज़बाँ हैं सब के सब | ||
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सुई के गिरने की आहट से गूँज उठते हैं | सुई के गिरने की आहट से गूँज उठते हैं | ||
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गिरफ़्त-ए-खौफ़ में ख़ाली मकाँ हैं सब के सब | गिरफ़्त-ए-खौफ़ में ख़ाली मकाँ हैं सब के सब | ||
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झुकाए सर जो खड़े हैं ख़िलाफ़ ज़ुल्मों के | झुकाए सर जो खड़े हैं ख़िलाफ़ ज़ुल्मों के | ||
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‘द्विज’,ऐसा लगता है वो बेज़बाँ हैं सब के सब | ‘द्विज’,ऐसा लगता है वो बेज़बाँ हैं सब के सब | ||
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10:18, 29 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
न वापसी है जहाँ से वहाँ हैं सब के सब
ज़मीं पे रह के ज़मीं पर कहाँ हैं सब के सब
कोई भी अब तो किसी की मुख़ाल्फ़त में नहीं
अब एक-दूसरे के राज़दाँ हैं सब के सब
क़दम-कदम पे अँधेरे सवाल करते हैं
ये कैसे नूर का तर्ज़े-बयाँ हैं सब के सब
वो बोलते हैं मगर बात रख नहीं पाते
ज़बान रखते हैं पर बेज़बाँ हैं सब के सब
सुई के गिरने की आहट से गूँज उठते हैं
गिरफ़्त-ए-खौफ़ में ख़ाली मकाँ हैं सब के सब
झुकाए सर जो खड़े हैं ख़िलाफ़ ज़ुल्मों के
‘द्विज’,ऐसा लगता है वो बेज़बाँ हैं सब के सब