भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विजेन्द्र 'द्विज' }} Category:ग़ज़ल इसी तरह से ये काँटा नि...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=द्विजेन्द्र 'द्विज' | |रचनाकार=द्विजेन्द्र 'द्विज' | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
− | + | <poem> | |
इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं | इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं | ||
− | |||
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं | हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं | ||
− | |||
हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल | हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल | ||
− | |||
वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं | वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं | ||
− | |||
हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी | हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी | ||
− | |||
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं | हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं | ||
− | + | कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमें | |
− | कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ | + | |
− | + | ||
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं | बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं | ||
− | |||
कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं | कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं | ||
− | |||
जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है | जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है | ||
− | |||
वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की | वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की | ||
− | + | कि जिनके साये ही दम-ख़म पिघाल देते हैं | |
− | कि जिनके साये ही | + | </poem> |
10:50, 29 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
इसी तरह से ये काँटा निकाल देते हैं
हम अपने दर्द को ग़ज़लों में ढाल देते हैं
हमारी नींदों में अक्सर जो डालती हैं ख़लल
वो ऐसी बातों को दिल से निकाल देते हैं
हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगी
हर एक बात को हम कल पे टाल देते हैं
कहीं दिखे ही नहीं गाँवों में वो पेड़ हमें
बुज़ुर्ग साये की जिनके मिसाल देते हैं
कमाल ये है वो गोहरशनास हैं ही नहीं
जो इक नज़र में समंदर खंगाल देते है
वो सारे हादसे हिम्मत बढ़ा गए ‘द्विज’ की
कि जिनके साये ही दम-ख़म पिघाल देते हैं