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"औज़ार बाँट कर ये सभी तोड़—फोड़ के / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर
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औज़ार बाँट कर ये सभी तोड़—फोड़ के | औज़ार बाँट कर ये सभी तोड़—फोड़ के | ||
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रक्खोगे किस तरह भला दुनिया को जोड़ के | रक्खोगे किस तरह भला दुनिया को जोड़ के | ||
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ख़ूँ से हथेलियों को ही करना है तर—ब—तर | ख़ूँ से हथेलियों को ही करना है तर—ब—तर | ||
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पानी तो आएगा नहीं पत्थर निचोड़ के | पानी तो आएगा नहीं पत्थर निचोड़ के | ||
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बेशक़ इन आँसुओं को तू सीने में क़ैद रख | बेशक़ इन आँसुओं को तू सीने में क़ैद रख | ||
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नदियाँ निकल ही आएँगी पर्वत को फोड़ के | नदियाँ निकल ही आएँगी पर्वत को फोड़ के | ||
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तूफ़ान साहिलों पे बहुत ही शदीद हैं | तूफ़ान साहिलों पे बहुत ही शदीद हैं | ||
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ले जाऊँ अब कहाँ मैं सफ़ीने को मोड़ के | ले जाऊँ अब कहाँ मैं सफ़ीने को मोड़ के | ||
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शामिल ही नहीं इसमें हुनरमंद लोग अब | शामिल ही नहीं इसमें हुनरमंद लोग अब | ||
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इतने कड़े नियम हैं ज़माने में होड़ के | इतने कड़े नियम हैं ज़माने में होड़ के | ||
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रहते हैं लाजवाब अब ऐसे सवाल ‘द्विज’! | रहते हैं लाजवाब अब ऐसे सवाल ‘द्विज’! | ||
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पूछे तेरा ज़मीर जो तुझको झंझोड़ के | पूछे तेरा ज़मीर जो तुझको झंझोड़ के |
11:01, 29 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
औज़ार बाँट कर ये सभी तोड़—फोड़ के
रक्खोगे किस तरह भला दुनिया को जोड़ के
ख़ूँ से हथेलियों को ही करना है तर—ब—तर
पानी तो आएगा नहीं पत्थर निचोड़ के
बेशक़ इन आँसुओं को तू सीने में क़ैद रख
नदियाँ निकल ही आएँगी पर्वत को फोड़ के
तूफ़ान साहिलों पे बहुत ही शदीद हैं
ले जाऊँ अब कहाँ मैं सफ़ीने को मोड़ के
शामिल ही नहीं इसमें हुनरमंद लोग अब
इतने कड़े नियम हैं ज़माने में होड़ के
रहते हैं लाजवाब अब ऐसे सवाल ‘द्विज’!
पूछे तेरा ज़मीर जो तुझको झंझोड़ के