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"मोम—परों से उड़ना और / द्विजेन्द्र 'द्विज'" के अवतरणों में अंतर

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मोम—परों से उड़ना और
 
मोम—परों से उड़ना और
 
 
इस दुनिया में रहना और  
 
इस दुनिया में रहना और  
 
  
 
आँख के आगे फिरना और
 
आँख के आगे फिरना और
 
 
पर तस्वीर में ढलना और  
 
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घर से सुबह निकलना और
 
घर से सुबह निकलना और
 
 
शाम को वापस आना और  
 
शाम को वापस आना और  
 
  
 
कुछ नज़रों में उठना और
 
कुछ नज़रों में उठना और
 
 
अपनी नज़र में गिरना और  
 
अपनी नज़र में गिरना और  
 
  
 
क़तरा—क़तरा भरना और
 
क़तरा—क़तरा भरना और
 
 
क़तरा—क़तरा ढलना और  
 
क़तरा—क़तरा ढलना और  
 
  
 
और है सपनों में जीना
 
और है सपनों में जीना
 
 
सपनों का मर जाना और  
 
सपनों का मर जाना और  
 
  
 
घर से होना दूर जुदा
 
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लेकिन ख़ुद से बिछड़ना और  
 
लेकिन ख़ुद से बिछड़ना और  
 
  
 
जीना और है लम्हों में
 
जीना और है लम्हों में
 
 
हाँ, साँसों का चलना और  
 
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रोज़ बसाना घर को अलग
 
रोज़ बसाना घर को अलग
 
 
घर का रोज़ उजड़ना और  
 
घर का रोज़ उजड़ना और  
 
  
 
ग़ज़लें कहना बात अलग
 
ग़ज़लें कहना बात अलग
 
 
पर शे‘रों—सा बनना और  
 
पर शे‘रों—सा बनना और  
 
  
 
रोज़ ही खाना ज़ख्म जुदा
 
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पर ज़ख़्मों का खुलना और  
 
पर ज़ख़्मों का खुलना और  
 
  
 
पेड़ उखड़ना बात अलग
 
पेड़ उखड़ना बात अलग
 
 
‘द्विज’! पेड़ों का कटना और
 
‘द्विज’! पेड़ों का कटना और
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11:16, 29 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

मोम—परों से उड़ना और
इस दुनिया में रहना और

आँख के आगे फिरना और
पर तस्वीर में ढलना और

घर से सुबह निकलना और
शाम को वापस आना और

कुछ नज़रों में उठना और
अपनी नज़र में गिरना और

क़तरा—क़तरा भरना और
क़तरा—क़तरा ढलना और

और है सपनों में जीना
सपनों का मर जाना और

घर से होना दूर जुदा
लेकिन ख़ुद से बिछड़ना और

जीना और है लम्हों में
हाँ, साँसों का चलना और
 
रोज़ बसाना घर को अलग
घर का रोज़ उजड़ना और

ग़ज़लें कहना बात अलग
पर शे‘रों—सा बनना और

रोज़ ही खाना ज़ख्म जुदा
पर ज़ख़्मों का खुलना और

पेड़ उखड़ना बात अलग
‘द्विज’! पेड़ों का कटना और