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शख़्स, जिसके अपने घर का रंग ही बदरंग है | शख़्स, जिसके अपने घर का रंग ही बदरंग है | ||
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सब पुराने आयुधों में लग चुकी अब ज़ंग है | सब पुराने आयुधों में लग चुकी अब ज़ंग है | ||
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वो क़लम की छ्टपटाहट पर करेंगे टिप्पणी | वो क़लम की छ्टपटाहट पर करेंगे टिप्पणी | ||
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भावना से हैं अपिरिचित, सोच को अरधंग है | भावना से हैं अपिरिचित, सोच को अरधंग है | ||
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‘द्विज’! कहो ग़ज़लें सुहानी, गीत गाओ धूप के | ‘द्विज’! कहो ग़ज़लें सुहानी, गीत गाओ धूप के | ||
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रात की काली सियाही का भयानक रंग है | रात की काली सियाही का भयानक रंग है | ||
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09:08, 29 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
नाम पर तहज़ीब-ओ-मज़हब के मचा हुड़दंग है
आदमी की आदमी से ही छिड़ी अब जंग है
रोज़ हंगामों से अपना शहर सारा दंग है
और बचने का यहाँ हर रास्ता भी तंग है
दे रहा है मशविरे वो घर सजाने के हमें
शख़्स, जिसके अपने घर का रंग ही बदरंग है
ढूँढने होंगे नये कुछ शस्त्र अब जा कर कहीं
सब पुराने आयुधों में लग चुकी अब ज़ंग है
वो क़लम की छ्टपटाहट पर करेंगे टिप्पणी
भावना से हैं अपिरिचित, सोच को अरधंग है
‘द्विज’! कहो ग़ज़लें सुहानी, गीत गाओ धूप के
रात की काली सियाही का भयानक रंग है