भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जी ही जी में / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जॉन एलिया }}{{KKVID|v=LUTjnCFwou0}} Category:ग़ज़ल <poem> जी ही जी में व…)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार= जॉन एलिया
 
|रचनाकार= जॉन एलिया
 
}}{{KKVID|v=LUTjnCFwou0}}
 
}}{{KKVID|v=LUTjnCFwou0}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
1.
 
जी ही जी में वो जल रही होगी
 
जी ही जी में वो जल रही होगी
चन्दनी में टहल रहीं होगी
+
चाँदनी में टहल रहीं होगी  
चान्द ने तान ली है चादर-ए-अब्र
+
अब वो कपड़े बदल रही होगी  
+
  
सो गई होगी वो शफक अन्दाम
+
चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
सब्ज़ किन्दीर जल रही होगी
+
अब वो कपड़े बदल रही होगी  
  
सुर्ख और सब्ज़ वादियो की तरफ
+
सो गई होगी वो शफ़क़ अन्दाम
 +
सब्ज़ किन्दील जल रही होगी
 +
 
 +
सुर्ख और सब्ज़ वादियों की तरफ
 
वो मेरे साथ चल रही होगी  
 
वो मेरे साथ चल रही होगी  
  
चढ़्ते-चढ़्ते किसी पहाड़ी पर  
+
चढ़ते-चढ़ते किसी पहाड़ी पर  
 
अब तो करवट बदल रही होगी  
 
अब तो करवट बदल रही होगी  
  
 
नील को झील नाक तक पहने   
 
नील को झील नाक तक पहने   
सन्दली ज़िस्म मल रही होगी  
+
सन्दली जिस्म मल रही होगी  
 +
 
 +
2.
  
काहे-काहे ब्स अब तही हो क्या  
+
गाहे-गाहे बस अब तही हो क्या  
 
तुम से मिल कर बहुत खुशी हो क्या
 
तुम से मिल कर बहुत खुशी हो क्या
  
पंक्ति 28: पंक्ति 32:
 
मुझ को अक्सर भुला चुकी हो क्या
 
मुझ को अक्सर भुला चुकी हो क्या
  
याद है अब भी अपने ख्वाब तुम्हे
+
याद हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हें
 
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या
 
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या
  
बस मुझे यू ही एक खयाल आया
+
बस मुझे यूँ ही एक ख़याल आया
 
सोचती हो तो सोचती हो क्या  
 
सोचती हो तो सोचती हो क्या  
  
पंक्ति 40: पंक्ति 44:
 
आखरी बार मिल रही हो क्या?
 
आखरी बार मिल रही हो क्या?
  
हाँ, फज़ा यहाँ की सोई-सोई सी है
+
है फज़ा याँ की सोई-सोई सी  
 
तुम बहुत तेज़ रोशनी हो क्या
 
तुम बहुत तेज़ रोशनी हो क्या
  
 
मेरे सब तंज़ बेअसर ही रहे
 
मेरे सब तंज़ बेअसर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या
+
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या?
?
+
  
 
दिल में अब सोज़े-इंतज़ार नहीं
 
दिल में अब सोज़े-इंतज़ार नहीं
 
शम्मे उम्मीद बुझ गई हो क्या?  
 
शम्मे उम्मीद बुझ गई हो क्या?  
 
</poem>
 
</poem>

12:33, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

1.
जी ही जी में वो जल रही होगी
चाँदनी में टहल रहीं होगी

चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी

सो गई होगी वो शफ़क़ अन्दाम
सब्ज़ किन्दील जल रही होगी

सुर्ख और सब्ज़ वादियों की तरफ
वो मेरे साथ चल रही होगी

चढ़ते-चढ़ते किसी पहाड़ी पर
अब तो करवट बदल रही होगी

नील को झील नाक तक पहने
सन्दली जिस्म मल रही होगी

2.

गाहे-गाहे बस अब तही हो क्या
तुम से मिल कर बहुत खुशी हो क्या

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझ को अक्सर भुला चुकी हो क्या

याद हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हें
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या

बस मुझे यूँ ही एक ख़याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या

अब मेरी कोई ज़िन्दगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िन्दगी हो क्या

क्या कहा इश्क जाबेदानी है
आखरी बार मिल रही हो क्या?

है फज़ा याँ की सोई-सोई सी
तुम बहुत तेज़ रोशनी हो क्या

मेरे सब तंज़ बेअसर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या?

दिल में अब सोज़े-इंतज़ार नहीं
शम्मे उम्मीद बुझ गई हो क्या?