"जब मिलेगी रोशनी मुझसे मिलेगी / रामावतार त्यागी" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ; | इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ; | ||
− | मत बुझाओ ! | + | मत बुझाओ! |
− | जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी ! | + | जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी! |
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पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले | पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले | ||
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ | अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ | ||
आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को | आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को | ||
− | एक मंदिर के | + | एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ; |
मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है; | मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है; | ||
− | मत मिटाओ | + | मत मिटाओ! |
+ | पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी! | ||
− | |||
बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो | बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो | ||
− | जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं | + | जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं |
− | इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से | + | इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से |
− | प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं | + | प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं |
− | एक अंगारा गरम मैं ही बचा | + | एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ |
− | मत | + | मत बुझाओ! |
+ | जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी! | ||
− | + | जी रहे हो किस कला का नाम लेकर | |
− | जी | + | |
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है, | कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है, | ||
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो | सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो | ||
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है; | वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है; | ||
− | मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ | + | मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ |
मत सुखाओ! | मत सुखाओ! | ||
+ | मैं खिलूँगा, तब नई बगिया खिलेगी! | ||
− | |||
शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी | शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी | ||
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझूंगा | मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझूंगा | ||
− | + | ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर | |
− | जब मरूँगा देवता बनकर | + | जब मरूँगा देवता बनकर पुजूँगा; |
आँसूओं को देखकर मेरी हँसी तुम | आँसूओं को देखकर मेरी हँसी तुम | ||
मत उड़ाओ! | मत उड़ाओ! | ||
− | + | मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी! | |
− | मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी | + | |
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11:53, 15 सितम्बर 2013 का अवतरण
इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;
मत बुझाओ!
जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!
पाँव तो मेरे थकन ने छील डाले
अब विचारों के सहारे चल रहा हूँ
आँसूओं से जन्म दे-देकर हँसी को
एक मंदिर के दिए-सा जल रहा हूँ;
मैं जहाँ धर दूँ कदम वह राजपथ है;
मत मिटाओ!
पाँव मेरे, देखकर दुनिया चलेगी!
बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं
इस कदर नफ़रत न बरसाओ नयन से
प्यार को हर गाँव दफनाता फिरूँ मैं
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ
मत बुझाओ!
जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!
जी रहे हो किस कला का नाम लेकर
कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है,
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो
वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है;
मैं बहारों का अकेला वंशधर हूँ
मत सुखाओ!
मैं खिलूँगा, तब नई बगिया खिलेगी!
शाम ने सबके मुखों पर आग मल दी
मैं जला हूँ, तो सुबह लाकर बुझूंगा
ज़िन्दगी सारी गुनाहों में बिताकर
जब मरूँगा देवता बनकर पुजूँगा;
आँसूओं को देखकर मेरी हँसी तुम
मत उड़ाओ!
मैं न रोऊँ, तो शिला कैसे गलेगी!