भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कविता रै औळे-दौळै / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा  
 
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा  
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>

23:19, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

भायलो कैवे
बावळो हुग्यो कांई
कांई सोचै है
बैठ्यो
आव घुम‘र आवां
गुवाड़ में ।

किंया समझावूं
गुवाड़ तो गुवाड़ म्हैं तो घूम लेवूं
आखै जग में कविता रै औळे-दौळै
एकलो बैठयो ई ।