भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पतियारो / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा |
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | |||
थारै सूं हर करती बगत | थारै सूं हर करती बगत | ||
कद सोची ही म्हैं | कद सोची ही म्हैं | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 20: | ||
म्हनैं पतियारो है ! | म्हनैं पतियारो है ! | ||
− | |||
</Poem> | </Poem> |
23:20, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
थारै सूं हर करती बगत
कद सोची ही म्हैं
कै इण भांत
खिंड जावैला
आपणै सपनां रो संसार।
हणै ई
ओळूं रै ओळावै
म्हैं गोख आवूं
मन रै खुणां-खचूणां
उण दुनियां रो अैनाण।
म्हनैं पतियारो है !