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18:16, 13 जुलाई 2008 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मैं हूँ साहुकारा नाथ, कीजिए हमारा सौदा,
छोटी बड़ी इलायची, छुहड़ा घर भरा है।
लवंग ओ सुपारी, कत्था केवरा सुवास भरो,
बांका है मुनक्का, जो डब्बे में रक्खा है।
किसमिस बादाम, ओ चिरंजी तमाम रक्खी,
गड़ी का है गोला साँचे का सा ढ़ला है।
सोंठ जीरा जायफल डिब्बे में कपूर देखो,
काली मीर्च पीपली चालान नयी आयी है।
हरदी हरीत के ठंढई भी ढेर रक्खी,
धनिया मसाला सब आला दरसाई है।
कहे अभिलाख लाल लीजिए मखाना पिस्ता,
दीजिए न दाम, दास चरणों पर पड़ा है।