भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुण जाणै किण मौत मरां ? / रवि पुरोहित" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= रवि पुरोहित | |रचनाकार= रवि पुरोहित | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
− | {{KKCatKavita}}<poem>चैतरफी | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | चैतरफी | ||
मुरङाण हवा में | मुरङाण हवा में | ||
छेवट कद लग मौन धरां ? | छेवट कद लग मौन धरां ? |
11:24, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
चैतरफी
मुरङाण हवा में
छेवट कद लग मौन धरां ?
समझायो धमकायो मन नैं
घणौ सांवट्यो घायल तन नैं,
दूजां री लेलङ्यां में ई
बिरथ गमायो म्हैं जीवन नैं ।
जीवन रो जद
जीव कळीजै
किण विध जीवन मान करां ?
भूख करावै पाप घणां
बिण विध जीवन राग भणां,
रातङली कट ज्यावै आंख्यां
सुख थोङा अर दुख घणां ।
धमाचैकङी चमगूंगां री
कुण जाणै किण मौत मरां ?
आंधा आखर
मेळ-जोळ रा
सबद अणमणां बंतळ-बोळ रा,
मांदो जीवन
जीव गळगळा
रंगरूट
घणां मोळ-खोळ रा ।
राज
हवा में डांगां रो
सपनैं कियां उङान भरां ?