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18:20, 13 जुलाई 2008 के समय का अवतरण
♦ रचनाकार: अज्ञात
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मैं बैठ्या खेत कै डोले पै
कित जासै सिखर दुपहरै नै ?
मेरी जान कालजा खटकै
मत जाइए जी, जी भटकै
लिए देख चार घड़ी डटके
खसबू आरई फूल झारे मैं ।
भावार्थ
--'मैं खेत की मेंड़ पर बैठा हूँ, इस प्रखर दोपहरी में तू कहाँ जा रही है । प्रिय, मेरा हृदय धड़क रहा है । तू
मत जा । मेरा मन भटकता है । चार क्षण के लिए यहाँ खड़ी हो जा । देख, फूल झर रहे हैं और उनकी सुगन्ध
फैल रही है ।