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"जे उट्ठ चल्लियों चाकरी, चाकरी वे माहिया / पंजाबी" के अवतरणों में अंतर
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17:31, 13 जुलाई 2008 का अवतरण
पंजाबी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जे उट्ठ चल्लियों चाकरी, चाकरी वे माहिया
सान्नूँ वी लै चल्लीं नाल वे
अख्खियाँ नूँ नींद क्यों न आई वे
तूँ करेंगा चाकरी, चाकरी वे माहिया
मैं कत्तांगी सोहणा सूत वे
अख्खियाँ नूँ नींद क्यों न आई वे
इक्क ट्का तेरी चाकरी, चाकरी वे माहिया
लख्ख टके दा मेरा सूत वे
अख्खियाँ नूँ नींद क्यों न आई वे
भावार्थ
--'यदि काम पर जाने के लिए तुम तैयार हो, काम पर जाने को प्रीतम ! तो मुझे भी अपने साथ ले चलो ।
अजी, मैं भी कहूँ, मुझे नींद क्यों नहीं आती ? तुम करोगे नौकरी, ओ मेरे प्रीतम ! और मैं कातूंगी सूत सुन्दर
मेरे प्रिय ! अजी, मैं भी सोचती हूँ, ये नींद क्यों नहीं आती ? एक रुपए की नौकरी तुम्हारी, ओ प्रीतम ! मेरा
सूत होगा एक लाख का । अजी, मैं भी कहूँ मुझे आख़िर नींद क्यों नहीं आती ।'