"क्षुद्र की महिमा / श्यामनन्दन किशोर" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
| पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर | |रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर | ||
}} | }} | ||
| − | शुद्ध सोना क्यों बनाया, प्रभु, मुझे तुमने, | + | {{KKCatKavita}} |
| − | कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए। | + | <poem> |
| + | शुद्ध सोना क्यों बनाया, प्रभु, मुझे तुमने, | ||
| + | कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए। | ||
| − | जो मिला तुममें भला क्या | + | जो मिला तुममें भला क्या |
| − | भिन्नता का स्वाद जाने, | + | भिन्नता का स्वाद जाने, |
| − | जो नियम में बंध गया | + | जो नियम में बंध गया |
| − | वह क्या भला अपवाद जाने! | + | वह क्या भला अपवाद जाने! |
| − | जो रहा समकक्ष, करुणा की मिली कब छांह उसको | + | जो रहा समकक्ष, करुणा की मिली कब छांह उसको |
| − | कुछ गिरावट चाहिए, उद्धार होने के लिए। | + | कुछ गिरावट चाहिए, उद्धार होने के लिए। |
| − | जो अजन्मा है, उन्हें इस | + | जो अजन्मा है, उन्हें इस |
| − | इंद्रधनुषी विश्व से संबंध क्या! | + | इंद्रधनुषी विश्व से संबंध क्या! |
| − | जो न पीड़ा झेल पाये स्वयं, | + | जो न पीड़ा झेल पाये स्वयं, |
| − | दूसरों के लिए उनको द्वंद्व क्या! | + | दूसरों के लिए उनको द्वंद्व क्या! |
| − | एक स्रष्टा शून्य को श्रृंगार सकता है | + | एक स्रष्टा शून्य को श्रृंगार सकता है |
| − | मोह कुछ तो चाहिए, साकार होने के लिए! | + | मोह कुछ तो चाहिए, साकार होने के लिए! |
| − | क्या निदाघ नहीं प्रलासी बादलों से | + | क्या निदाघ नहीं प्रलासी बादलों से |
| − | खींच सावन धार लाता है! | + | खींच सावन धार लाता है! |
| − | निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे | + | निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे |
| − | क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है! | + | क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है! |
| − | है अभाव जहाँ, वहीं है भाव दुर्लभ - | + | है अभाव जहाँ, वहीं है भाव दुर्लभ - |
| − | कुछ विकर्षण चाहिए ही, प्यार होने के लिए! | + | कुछ विकर्षण चाहिए ही, प्यार होने के लिए! |
| − | वाद्य यंत्र न दृष्टि पथ, पर हो, | + | वाद्य यंत्र न दृष्टि पथ, पर हो, |
| − | मधुर झंकार लगती और भी! | + | मधुर झंकार लगती और भी! |
| − | विरह के मधुवन सरीखे दीखते | + | विरह के मधुवन सरीखे दीखते |
| − | हैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी! | + | हैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी! |
| − | साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान! | + | साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान! |
| − | चाहिए दूरी तनिक, अधिकार होने के लिए!< | + | चाहिए दूरी तनिक, अधिकार होने के लिए! |
| + | </poem> | ||
14:08, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण
शुद्ध सोना क्यों बनाया, प्रभु, मुझे तुमने,
कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।
जो मिला तुममें भला क्या
भिन्नता का स्वाद जाने,
जो नियम में बंध गया
वह क्या भला अपवाद जाने!
जो रहा समकक्ष, करुणा की मिली कब छांह उसको
कुछ गिरावट चाहिए, उद्धार होने के लिए।
जो अजन्मा है, उन्हें इस
इंद्रधनुषी विश्व से संबंध क्या!
जो न पीड़ा झेल पाये स्वयं,
दूसरों के लिए उनको द्वंद्व क्या!
एक स्रष्टा शून्य को श्रृंगार सकता है
मोह कुछ तो चाहिए, साकार होने के लिए!
क्या निदाघ नहीं प्रलासी बादलों से
खींच सावन धार लाता है!
निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे
क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!
है अभाव जहाँ, वहीं है भाव दुर्लभ -
कुछ विकर्षण चाहिए ही, प्यार होने के लिए!
वाद्य यंत्र न दृष्टि पथ, पर हो,
मधुर झंकार लगती और भी!
विरह के मधुवन सरीखे दीखते
हैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी!
साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान!
चाहिए दूरी तनिक, अधिकार होने के लिए!
