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"शून्य मन्दिर में बनूँगी / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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जाने किस जीवन की सुधि ले<br>
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शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी!<br><br>
लहराती आती मधु-बयार!<br>
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लहराती आती मधु-बयार!<br><br>
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रंजित कर दे यह शिथिल चरण ले नव अशोक का अरुण राग,<br>
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अर्चना हों शूल भोले,<br>
मेरे मण्डन को आज मधुर ला रजनीगन्धा का पराग,<br><br>
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क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले,<br><br>
  
यूथी की मीलित कलियों से<br>
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आज करुणा-स्नात उजला<br>
अलि दे मेरी कवरी सँवार!<br><br>
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दु:ख हो मेरा पुजारी!<br><br>
  
पाटल के सुरभित रंगों से रंग दे हिम सा उज्जवल दुकूल;<br>
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नूपुरों का मूक छूना,<br>
गुथ दे रशना में अलि-गुंजन से पूरित झरते वकुल-फूल;<br><br>
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सरद कर दे विश्व सूना,<br>
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यह अगम आकाश उतरे<br>
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कम्पनी का हो भिखारी!<br>
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लोल तारक भी अचंचल,<br>
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चल न मेरी एक कुन्तल,<br>
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अचल रोमों में समाई<br>
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मुग्ध हो गति आज सारी!<br><br>
  
रजनी से अंजन माँग सजनि<br>
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राग मद की दूर लाली,<br>
दे मेरे अलसित नयन सार!<br><br>
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साध भी इसमें न पाली,<br>
 
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शून्य चितवन में बसेगी<br>
तारक-लोचन से सींच-सींच नभ करता रज को विरज आज;<br>
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मूक हो गाथा तुम्हारी!<br><br>
बरसाता पथ में हरसिंगार केशर से चर्चित सुमन-लाज;<br><br>
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कण्टकित रसालों पर उठता-<br>
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है पागल पिक मुझको पुकार!<br>
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लहराती आती मधु-बयार!<br><br>
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20:05, 17 नवम्बर 2007 का अवतरण

शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी!

अर्चना हों शूल भोले,
क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले,

आज करुणा-स्नात उजला
दु:ख हो मेरा पुजारी!

नूपुरों का मूक छूना,
सरद कर दे विश्व सूना,
यह अगम आकाश उतरे
कम्पनी का हो भिखारी!
लोल तारक भी अचंचल,
चल न मेरी एक कुन्तल,
अचल रोमों में समाई
मुग्ध हो गति आज सारी!

राग मद की दूर लाली,
साध भी इसमें न पाली,
शून्य चितवन में बसेगी
मूक हो गाथा तुम्हारी!