भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मंद-मंद मुसकावत आवत / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत। | मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत। | ||
चिा-बिा हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग ड्डेरत॥ | चिा-बिा हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग ड्डेरत॥ | ||
− | मुरली, | + | मुरली, क्रीड़ा-कमल प्रफ्फुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन। |
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः-पुनः अर्पित कौं अरपन॥ | देखि राधिका, करन लगी निज पुनः-पुनः अर्पित कौं अरपन॥ | ||
21:02, 10 जनवरी 2014 के समय का अवतरण
मंद-मंद मुसकावत आवत।
देखि दूर ही तें भइ बिहवल राधा-मन आनँद न समावत॥
नव नीरद-घनस्याम-कांति कल, पीत बसन बर तन पर सोभित।
मालति-कमल-माल उर राजत, भँवर-पाँति मँडरात सुलोभित॥
सकल अंग चंदन अनुलेपित, रत्नाभरन-बिभूषित सुचि तन।
सिखा सुसोभित मोर-पिच्छ, मनि-मुकुट सुमंडित, केस कृष्न-घन॥
मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत।
चिा-बिा हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग ड्डेरत॥
मुरली, क्रीड़ा-कमल प्रफ्फुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन।
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः-पुनः अर्पित कौं अरपन॥
(दोहा)
उमग्यो परमानंद निधि, राधा भई बिभोर।
भूमि परत, दै कर-कमल, लई उठाय किसोर॥
चरन पकर बैठी निकट, निकसत नहिं मुख-बैन।
कछुक काल महँ धीर धरि, बोली-’सुनु सुख-ऐन’ !॥