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"सिलाई मशीनें / महेश वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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19:22, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

सिलाई मशीनें बूढ़ी नहीं हुई हैं
उन औरतों की तरह जो
अपने पचासवें साल में भी
मेहनत से अपना शरीर सुडौल बनाए रखती हैं।
कहीं भी उनके चर्बी नहीं चढ़ी हैं
और सारे दाँत अपनी जगह पर मौजूद।
उनकी टूटी सुई बदलने का सौभाग्य
आपको मिला हो तो आप ज़रूर चौंके होंगे
उनके मुँह में ग़लती से चली गई
अपनी उँगली पर उनके तेज़ दाँतों की चुभन से।
उनकी आवाज़ में वही अधिकारपूर्ण फटकार है
जो अत्यधिक धनी औरतों या मठों के
कठोर अनुशासन में कुँआरी रही आई
भक्तिनों की आवाज़ में ही पायी जाती है।
दोपहरों में सोते से जगा दिए जाने पर
उनकी आवाज़ में आई कड़वाहट
शाम तक चली जाती है।

गर्मियों में उन्हें खूब चुन्नटों वाले
और घेरदार कपड़े पसंद आते हैं,
हल्के रंग के और
जाड़ों में रंग -
बिरंगी छीटें और फूल वाले प्रिंट।

वे मानिनी नायिका की भावमुद्रा में हैं
लेकिन एक त्रासद नाटक के
अवश्यंभावी दुखांत में उनका मरना निश्चित है।