भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"करम गति टारै / कबीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=कबीर
 
|रचनाकार=कबीर
 +
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:भजन]]
 
 
<poem>
 
<poem>
 
करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥
 
करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥

12:15, 21 अप्रैल 2014 का अवतरण

करम गति टारै नाहिं टरी॥ टेक॥

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥

कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥

पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर बिपति परी।
कहत कबीर सुनो भै साधो होने होके रही॥ ३॥