"घिन तो नहीं आती है / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
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+ | सच सच बतलाओ | ||
+ | घिन तो नहीं आती है? | ||
+ | जी तो नहीं कढता है? | ||
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+ | बोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेला | ||
+ | धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका | ||
+ | थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर | ||
+ | सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन | ||
+ | आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं | ||
+ | बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर | ||
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+ | सच सच बतलाओ | ||
+ | जी तो नहीं कढ़ता है? | ||
+ | घिन तो नहीं आती है? | ||
− | + | दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा | |
− | + | निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने | |
− | + | बैठना है पंखे के नीचे, अगले डिब्बे मैं | |
− | + | ये तो बस इसी तरह | |
− | + | लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे | |
− | + | भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की | |
− | + | सच सच बतलाओ | |
− | + | अखरती तो नहीं इनकी सोहबत? | |
− | + | जी तो नहीं कुढता है? | |
− | + | घिन तो नहीं आती है? | |
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− | निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने | + | |
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− | ये तो बस इसी तरह | + | |
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− | भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की | + | |
− | सच सच बतलाओ | + | |
− | अखरती तो नहीं इनकी सोहबत ? | + | |
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11:37, 1 मई 2014 के समय का अवतरण
पूरी स्पीड में है ट्राम
खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन
पसीने से लथपथ ।
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है?
जी तो नहीं कढता है?
कुली मज़दूर हैं
बोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेला
धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका
थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन
आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं
बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर
आपस मैं उनकी बतकही
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढ़ता है?
घिन तो नहीं आती है?
दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने
बैठना है पंखे के नीचे, अगले डिब्बे मैं
ये तो बस इसी तरह
लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की
सच सच बतलाओ
अखरती तो नहीं इनकी सोहबत?
जी तो नहीं कुढता है?
घिन तो नहीं आती है?