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"ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर
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− | जाम भर दे गुनाहगारों के | + | जाम भर दे गुनाहगारों के |
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10:19, 7 मई 2014 का अवतरण
ढल गया आफ़ताब ऐ साक़ी ला पिला दे शराब ऐ साक़ी
या सुराही लगा मेरे मुँह से या उलट दे नक़ाब ऐ साक़ी
मैकदा छोड़ कर कहाँ जाऊँ है ज़माना ख़राब ऐ साक़ी
जाम भर दे गुनाहगारों के ये भी है इक सवाब ऐ साक़ी
आज पीने दे और पीने दे कल करेंगे हिसाब ऐ साक़ी </poem>