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20:20, 16 मई 2014 के समय का अवतरण
घीव दूध में रमि रह्या व्यापक सब हीं ठौर
दादू बकता बहुत है मथि काढै ते और
यह मसीत यह देहरा सतगुरु दिया दिखाई
भीतर सेवा बन्दगी बाहिर कहे जाई
दादू देख दयाल को सकल रहा भरपूर
रोम-रोम में रमि रह्या तू जनि जाने दूर
केते पारखि पचि मुए कीमति कही न जाई
दादू सब हैरान हैं गूँगे का गुड़ खाई
जब मन लागे राम सों तब अनत काहे को जाई
दादू पाणी लूण ज्यों ऐसे रहे समाई