भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुबारिक सादी हो बनड़े ये घोड़ी नाचती आई / हरियाणवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=शा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
तेरे बाब्बू हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
 
तेरे बाब्बू हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
 
तेरे चाचा हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
 
तेरे चाचा हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
 +
तेरे मन पसंद बनड़े ये घोड़ी क्यूं नहीं आई
 +
मुबारिक सादी हो बनड़े ये घोड़ी नाचती आई
 +
तेरे फूफा हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
 +
तेरे मौसा हजारी ने बड़ी दूरों से मंगवाई
 
तेरे मन पसंद बनड़े ये घोड़ी क्यूं नहीं आई
 
तेरे मन पसंद बनड़े ये घोड़ी क्यूं नहीं आई
 
</poem>
 
</poem>

12:53, 13 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

मुबारिक सादी हो बनड़े ये घोड़ी नाचती आई
तेरे बाबा हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
तेरे ताऊ हजारी ने बड़ी दूरों से मंगवाई
तेरे मन पसंद बनड़े ये घोड़ी क्यूं नहीं आई
मुबारिक सादी हो बनड़े ये घोड़ी नाचती आई
तेरे बाब्बू हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
तेरे चाचा हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
तेरे मन पसंद बनड़े ये घोड़ी क्यूं नहीं आई
मुबारिक सादी हो बनड़े ये घोड़ी नाचती आई
तेरे फूफा हजारी नै बड़ी दूरों से मंगवाई
तेरे मौसा हजारी ने बड़ी दूरों से मंगवाई
तेरे मन पसंद बनड़े ये घोड़ी क्यूं नहीं आई