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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
नथली के जुलमी तोता हालै झूलै मत रे
ऐसी बेहोस करी रे रस टपकै लगी झड़ी रे
या है पीले अधर भरी रे रसता भूले मत रे
फल कच्चे पक्े होते वे झूठे करे नपूते
ढोला तूं छोड़ अछूते सबे गबूरे मत रे