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"सुबह की आस / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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शाम ढलते ही तेरा दर्द चमक उठता है  
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तीरगी दूर तलक रात की छट जाती है  
  
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बर्फ़ सीनों की न पिघले तो यही रूद-ए-हयात
तीरगी दूर तलक रात की छट जाती है <br><br>
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जू-ए-कम-आब की मानिंद सिमट जाती है <br><br>
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हाँ ख़बर-दार कि इक लग़्ज़िश-ए-पा से भी कभी  
आज भी रात गये नींद उचट जाती है <br><br>
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सारी तारीख़ की रफ़्तार पलट जाती है  
 
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हाँ ख़बर-दार कि इक लग़्ज़िश-ए-पा से भी कभी <br>
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सारी तारीख़ की रफ़्तार पलट जाती है <br><br>
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12:41, 19 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

सुबह की आस किसी लम्हे जो घट जाती है
ज़िन्दगी सहम के ख़्वाबों से लिपट जाती है

शाम ढलते ही तेरा दर्द चमक उठता है
तीरगी दूर तलक रात की छट जाती है

बर्फ़ सीनों की न पिघले तो यही रूद-ए-हयात
जू-ए-कम-आब की मानिंद सिमट जाती है

आहटें कौन सी ख़्वाबों में बसी है जाने
आज भी रात गये नींद उचट जाती है

हाँ ख़बर-दार कि इक लग़्ज़िश-ए-पा से भी कभी
सारी तारीख़ की रफ़्तार पलट जाती है