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"अब्बा की चौपाल /शशि पुरवार" के अवतरणों में अंतर
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अब्बा बदले नहीं | अब्बा बदले नहीं |
16:45, 15 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
अब्बा बदले नहीं
न बदली है उनकी चौपाल
अब्बा की आवाज गूँजती
घर आँगन थर्राते है
मारे भय के चुनियाँ मुनियाँ
दाँतों, अँगुली चबाते है
ऐनक लगा कर आँखों पर
पढ़ लेते है मन का हाल.
पूँजी नियम- कायदों की, हाँ
नित प्रातः ही मिल जाती है
टूट गया यदि नियम, क्रोध से
दीवारे हिल जाती है
अम्मा ने आँसू पोंछे गर
मचता तुरत बबाल.
पूरे वक़्त रसोईघर में
अम्मा खटती रहती है
अब्बा के संभाषण अपने
कानों सुनती रहती है
हँसना भूल गयी है
खुद से करती यही सवाल .