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"मन की कहा कहों मनमोहन! / स्वामी सनातनदेव" के अवतरणों में अंतर
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राग सोहनी, तीन ताल 28.8.1974
मनकी कहा कहों मनमोहन!
इत-उत ही अटकट भटकत है, टिकत नाहिं एक हुँ छिन॥
हौं हार्यौ समुझाय प्रानधन! होत ढीठ यह दिन-रात।
तुम्हरो ह्वै तुम ही को भूलत-ऐसो है यह कृतघन॥1॥
कहा कहों, कछु बस नहिं मेरो, चलत नाहिं अपनो प्रन।
पुनि-पुनि नाथ! हार ही मानी, करि देखे बहु प्रयतन॥2॥
अब तो याहि आप ही साधहु, करहु कृपा मनमोहन!
अपनो जानि याहि अपनावहु, आय प्यौ तव चरनन॥3॥