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"स्याम! मोरी लाज तिहारे हाथ / स्वामी सनातनदेव" के अवतरणों में अंतर
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13:43, 21 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
राग तैलंग, तीन ताल 23.8.1974
स्याम! मोरी लाज तिहारे हाथ।
कहा कहों मेरे मनमोहन! अपनी औगुन-गाथा<ref>अवगुणों की कहानी</ref>॥
जानत हो सब ही मो मनकी, उरझन जो मो माथ।
साधन-अराधन बिनु हूँ मैं तरन चहों भव-पाथ॥1॥
लच्छ दूर, करनी न कहूँ कछु कहा करों अब नाथ!
सब बल सिथिल, सिथिल पौरुष हूँ, दीखत कोउ न साथ॥2॥
पै है अति हि भरोस तिहारो, तुम अनाथके नाथ।
या ही सों सब आस-त्रास तजि तकहुँ तिहारो हाथ॥3॥
सरनागतकी पत राखत हो, जगत विदित यह बात।
हौं हूँ चरन-सरन तकि आयो, क्यों त्यागहुगे नाथ!॥4॥
शब्दार्थ
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