भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खुली आँखों में / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
| (एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
| पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
| − | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
| − | + | {{KKRachna | |
| − | + | |रचनाकार=परवीन शाकिर | |
| − | + | |संग्रह= | |
| + | }} | ||
| + | {{KKCatGhazal}} | ||
| + | <poem> | ||
| + | खुली आँखों में सपना जागता है | ||
| + | वो सोया है के कुछ कुछ जागता है | ||
| − | + | तेरी चाहत के भीगे जंगलों में | |
| + | मेरा तन मोर बन के नाचता है | ||
| − | + | मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे | |
| − | वो | + | वो मेरे सब हवाले जानता है |
| − | + | किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल | |
| − | + | बहाने से मुझे भी टालता है | |
| − | + | सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा | |
| − | + | के मेरे घर का कच्चा रास्ता है | |
| − | + | </poem> | |
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा | + | |
| − | के मेरे घर का कच्चा रास्ता है< | + | |
10:56, 25 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
खुली आँखों में सपना जागता है
वो सोया है के कुछ कुछ जागता है
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा तन मोर बन के नाचता है
मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा
के मेरे घर का कच्चा रास्ता है
