<div class='box' style="background-color:#DD5511eee;width:100%; alignpadding:center10px"><div class='boxtop'><div></div></div><div class='boxheader' style='"background-color:#DD5511transparent; colorwidth:#ffffff'></div><div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color95%; height:#FFF3DF450px; overflow:auto;border:1px solid 0px inset #DD5511aaa;'><!----BOX CONTENT STARTS------><table width=100% style="backgroundpadding:transparent10px"><tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td><td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td><td> '''शीर्षक: '''सूत्रधार<br> '''रचनाकार:''' [[विमल कुमार]]</td></tr></table>
<pre div style="overflowfont-size:auto120%;heightcolor:21em#a00000;backgroundtext-align:transparentcenter; border:none">मैं इन दिनों खेले जा रहेएक अजीबोग़रीब नाटक का सूत्रधार हूँअभी नेपथ्य से ही बोल रहा हूँकि लोकतन्त्र में किसी बात पर बहस हो सकती हैइस बात पर भी बहस हो सकती हैकि हत्या करना कितना ज़रूरी है एक आदमी कीमानवता की रक्षा के खुले तुम्हारे लिएकि बलात्कार से महिलाएँ कितनी जागरूक होती हैंअपने अधिकारों हृदय के प्रतिद्वार</div>
इस नाटक के हर सीन के बाद<div style="text-align: center;">एक संवाददाता सम्मेलन होगा, जो क्षेपक है,रचनाकार: [[त्रिलोचन]]उसमें बताया जाएगाकि इन बहसों के नतीजे क्या निकले हैंकि आख़िर में कौन सा संकल्प पारित हुआ हैअगले दिन फिर अख़बारों में उनकी ख़बर होगीमुखपृष्ठ परटी०वी० पर फिर चेहरा नज़र आएगा उनकाचारों तरफ़ कैमरों से घिरी होगी उनकी कायाफिर एक विधेयक पेश होगा संशोधन के साथएक प्राहिकरण बनेगाऔर कुछ नहीं हुआ तो कम से कम अध्यक्ष का चयन ज़रूर होगा</div>
मैं इस लम्बे और उबाऊ नाटक का सूत्रधार हूँलचर कथानक और ढीले सम्वादों से बोर हो चुका हूँलेकिन क्या करूँ अब मंच पर आकर बोल रहा हूँकि लोकतन्त्र में कोई भी जनप्रतिनिधी कह सकता हैकि भूखी जनता को पहले अपने राष्ट्रप्रेम का परिचय देना चाहिएकि नंगी जनता को समझना चाहिएकि बम ज़्यादा ज़रूरी है अंग ढँकने सेकि बच्चों को भी जान लेना चाहिएयुध से ही उनका भविष्य संवर सकता हैकि औरतों को भी मान लेना चाहिएकि सौन्दर्य में ही छिपी हुई है उनकी आज़ादीमध्यांतर में इस बात पर विशेष चर्चा होगीकि आज़ाई के पचास साल बादलुटेरे ही एश का निर्माण कर सकेंगेक्योंकि उनमें अद्भुत्त नेतृत्त्व<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-क्षमता हैshadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">कि मक्कार ही ईमानदारी की भाशःआ सिखाएंगेक्योंकि विकास खुले तुम्हारे लिए हृदय के लिए धूर्तता बहुत ज़रूरी हैकि अहंकारी ही ज्ञान का प्रचार करेंगेद्वारक्योंकि विनम्रता में तो छिपी होती है मूर्खताअपरिचित पास आओ
मैं इस नाटक का सूत्रधार हूँआँखों में सशंक जिज्ञासापर निर्देर्शक का दबाव भी मेरे ऊपर बहुत मिक्ति कहाँ, हैअभी कुहासालेकिन मुझे तो सच कहना है लेखक के अनुसारजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंइसलिए सच कह रहा हूँस्तम्भ शेष भय की परिभाषाकि नाटक हिलो-मिलो फिर एक डाल के ख़त्म होने परहर कलाकार का उससे परिचय कराया जाऐगायह बताया जाऐगाकि जो व्यक्ति कभी मंच पर आया ही नहींवही मुख्य नायक था इस नाटक काकि जो शोर सुनाई दे रहा था आपको अभी तकवह दरअसल नाटक का संगीत थाकि सभागार में जो अंधेरा छाया थावह लाइटिंग के ही कमाल का नतीजा थाखिलो फूल-से, मत अलगाओ
दर्शको! इस नाटक के अभी और शो होंगेसबमें अपनेपन की मायायह नाटक अगली सदी अपने पन में भीइसी तरह हर शहर में खेला जाऐगा नाट्य-समीक्षको!अगर भारतीय रंगमंच को बचाना हैतो कुछ न कुछ आप लोगों को भी करना होगाइस समय नाट्य लेखन,अभिनयप्रस्तुतिसब ख़तरे में हैजीवन आया </prediv><!----BOX CONTENT ENDS------></div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>