"फुटकर पद / रहीम" के अवतरणों में अंतर
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− | (घनाक्षरी) | + | '''(घनाक्षरी)''' |
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अति अनियारे मानों सान दै सुधारे, | अति अनियारे मानों सान दै सुधारे, | ||
− | + | महा विष के विषारे ये करत पर-घात हैं। | |
ऐसे अपराधी देख अगम अगाधी यहै, | ऐसे अपराधी देख अगम अगाधी यहै, | ||
− | + | साधना जो साधी हरि हयि में अन्हात हैं॥ | |
बार बार बोरे याते लाल लाल डोरे भये, | बार बार बोरे याते लाल लाल डोरे भये, | ||
− | + | तोहू तो 'रहीम' थोरे बिधि ना सकात हैं। | |
घाइक घनेरे दुखदाइक हैं मेरे नित, | घाइक घनेरे दुखदाइक हैं मेरे नित, | ||
− | + | नैन बान तेरे उर बेधि बेधि जात हैं॥1॥ | |
पट चाहे तन पेट चाहत छदन मन | पट चाहे तन पेट चाहत छदन मन | ||
− | + | चाहत है धन, जेती संपदा सराहिबी। | |
तेरोई कहाय कै 'रहीम' कहै दीनबंधु | तेरोई कहाय कै 'रहीम' कहै दीनबंधु | ||
− | + | आपनी बिपत्ति जाय काके द्वारे काहिबी॥ | |
पेट भर खायो चाहे, उद्यम बनायो चाहे, | पेट भर खायो चाहे, उद्यम बनायो चाहे, | ||
− | + | कुटुंब जियायो चाहे काढि गुन लाहिबी। | |
जीविका हमारी जो पै औरन के कर डारो, | जीविका हमारी जो पै औरन के कर डारो, | ||
− | + | ब्रज के बिहारी तो तिहारी कहाँ साहिबी॥2॥ | |
बड़ेन सों जान पहिचान कै रहीम कहा, | बड़ेन सों जान पहिचान कै रहीम कहा, | ||
− | + | जो पै करतार ही न सुख देनहार है। | |
सीत-हर सूरज सों नेह कियो याही हेत, | सीत-हर सूरज सों नेह कियो याही हेत, | ||
− | + | ताऊ पै कमल जारि डारत तुषार है॥ | |
नीरनिधि माँहि धस्यो शंकर के सीस बस्यो, | नीरनिधि माँहि धस्यो शंकर के सीस बस्यो, | ||
− | + | तऊ ना कलंक नस्यो ससि में सदा रहै। | |
बड़ो रीझिवार है, चकोर दरबार है, | बड़ो रीझिवार है, चकोर दरबार है, | ||
− | + | कलानिधि सो यार तऊ चाखत अंगार है॥3॥ | |
मोहिबो निछोहिबो सनेह में तो नयो नाहिं, | मोहिबो निछोहिबो सनेह में तो नयो नाहिं, | ||
− | + | भले ही निठुर भये काहे को लजाइये॥ | |
तन मन रावरे सो मतों के मगन हेतु, | तन मन रावरे सो मतों के मगन हेतु, | ||
− | + | उचरि गये ते कहा तुम्हें खोरि लाइये॥ | |
चित लाग्यो जित जैये तितही 'रहीम' नित, | चित लाग्यो जित जैये तितही 'रहीम' नित, | ||
− | + | धाधवे के हित इत एक बार आइये॥ | |
जान हुरसी उर बसी है तिहारे उर, | जान हुरसी उर बसी है तिहारे उर, | ||
− | + | मोसों प्रीति बसी तऊ हँसी न कराइये॥4॥ | |
− | + | '''(सवैया)''' | |
+ | जाति हुती सखि गोहन में मन मोहन कों लखिकै ललचानो। | ||
+ | नागरि नारि नई ब्रज की उनहूँ नूंदलाल को रीझिबो जानो॥ | ||
+ | जाति भई फिरि कै चितई तब भाव 'रहीम' यहै उर आनो। | ||
+ | ज्यों कमनैत दमानक में फिरि तीर सों मारि लै जात निसानो॥5॥ | ||
− | + | जिहि कारन बार न लाये कछू गहि संभु-सरासन दोय किया। | |
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− | जिहि कारन बार न लाये कछू गहि संभु-सरासन दोय | + | |
गये गेहहिं त्यागि के ताही समै सु निकारि पिता बनवास दिया 1। | गये गेहहिं त्यागि के ताही समै सु निकारि पिता बनवास दिया 1। | ||
− | कहे बीच 'रहीम' रर्यो न कछू जिन कीनो हुतो बिनुहार | + | कहे बीच 'रहीम' रर्यो न कछू जिन कीनो हुतो बिनुहार हिया। |
− | बिधि यों न सिया रसबार सिया करबार सिया पिय सार | + | बिधि यों न सिया रसबार सिया करबार सिया पिय सार सिया॥6॥ |
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− | + | दीन चहैं करतार जिन्हें सुख सो तो 'रहीम' टरै नहिं टारे। | |
− | + | उद्यम पौरुष कीने बिना धन आवत आपुहिं हाथ पसारे॥ | |
− | + | दैव हँसे अपनी अपनी बिधि के परपंच न जात बिचारे। | |
− | + | बेटा भयो वसुदेव के धाम औ दुंदुभि बाजत नंद के द्वारे॥7॥ | |
− | + | पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै लगि लागि गयो कहुँ काहु करैटो। | |
+ | हिरदै दहिबै सहिबै ही को है कहिबै को कहा कछु है गहि फेटो॥ | ||
+ | सूधे चितै तन हा हा करें हू 'रहीम' इतो दुख जात क्यों मेटो। | ||
+ | ऐसे कठोर सों औ चितचोर सों कौन सी हाय घरी भई भेंटो॥8॥ | ||
− | + | कौन धौं सीख 'रहीम' इहाँ इन नैन अनोखि यै नेह की नाँधनि। | |
− | + | प्यारे सों पुन्यन भेंट भई यह लोक की लाज बड़ी अपराधिनि॥ | |
+ | स्याम सुधानिधि आनन को मरिये सखि सूँधे चितैवे की साधनि। | ||
+ | ओट किए रहतै न बनै कहतै न बनै बिरहानल बाधनि॥9॥ | ||
− | + | '''(दोहा)''' | |
− | + | धर रहसी रहसी धरम खप जासी खुरसाण। | |
+ | अमर बिसंभर ऊपरै, राखो नहचौ राण॥10॥ | ||
− | + | तारायनि ससि रैन प्रति, सूर होंहि ससि गैन। | |
+ | तदपि अँधेरो है सखी, पीऊ न देखे नैन॥11॥ | ||
− | छबि आवन मोहनलाल | + | '''(पद)''' |
− | काछनि काछे कलित मुरलि कर पीत पिछौरी साल | + | छबि आवन मोहनलाल की। |
− | बंक तिलक केसर को कीने दुति मानो बिधु बाल | + | काछनि काछे कलित मुरलि कर पीत पिछौरी साल की॥ |
− | बिसरत नाहिं सखि मो मन ते चितवनि नयन बिसाल | + | बंक तिलक केसर को कीने दुति मानो बिधु बाल की। |
− | नीकी हँसनि अधर सधरनि की छबि छीनी सुमन गुलाल | + | बिसरत नाहिं सखि मो मन ते चितवनि नयन बिसाल की॥ |
− | जल सों डारि दियो पुरइन पर डोलनि मुकता माल | + | नीकी हँसनि अधर सधरनि की छबि छीनी सुमन गुलाल की। |
− | आप मोल बिन मोलनि डोलनि बोलनि मदनगोपाल | + | जल सों डारि दियो पुरइन पर डोलनि मुकता माल की॥ |
− | यह सरूप निरखै सोइ जानै इस 'रहीम' के हाल | + | आप मोल बिन मोलनि डोलनि बोलनि मदनगोपाल की। |
+ | यह सरूप निरखै सोइ जानै इस 'रहीम' के हाल की॥12॥ | ||
− | कमल-दल नैननि की | + | कमल-दल नैननि की उनमानि। |
− | बिसरत नाहिं सखी मो मन ते मंद मंद | + | बिसरत नाहिं सखी मो मन ते मंद मंद मुसकानि॥ |
− | यह दसननि दुति चपला हूते महा चपल | + | यह दसननि दुति चपला हूते महा चपल चमकानि। |
− | बसुधा की बसकरी मधुरता सुधा-पगी | + | बसुधा की बसकरी मधुरता सुधा-पगी बतरानि॥ |
− | चढ़ी रहे चित उर बिसाल को मुकुतमाल | + | चढ़ी रहे चित उर बिसाल को मुकुतमाल थहरानि। |
− | नृत्य-समय पीतांबर हू की फहरि फहरि | + | नृत्य-समय पीतांबर हू की फहरि फहरि फहरानि। |
− | अनुदिन श्री वृन्दाबन ब्रज ते आवन आवन | + | अनुदिन श्री वृन्दाबन ब्रज ते आवन आवन जाति। |
− | अब 'रहीम 'चित ते न टरति है सकल स्याम की | + | अब 'रहीम 'चित ते न टरति है सकल स्याम की बानि॥13॥ |
+ | </poem> |
14:29, 10 जून 2015 के समय का अवतरण
(घनाक्षरी)
अति अनियारे मानों सान दै सुधारे,
महा विष के विषारे ये करत पर-घात हैं।
ऐसे अपराधी देख अगम अगाधी यहै,
साधना जो साधी हरि हयि में अन्हात हैं॥
बार बार बोरे याते लाल लाल डोरे भये,
तोहू तो 'रहीम' थोरे बिधि ना सकात हैं।
घाइक घनेरे दुखदाइक हैं मेरे नित,
नैन बान तेरे उर बेधि बेधि जात हैं॥1॥
पट चाहे तन पेट चाहत छदन मन
चाहत है धन, जेती संपदा सराहिबी।
तेरोई कहाय कै 'रहीम' कहै दीनबंधु
आपनी बिपत्ति जाय काके द्वारे काहिबी॥
पेट भर खायो चाहे, उद्यम बनायो चाहे,
कुटुंब जियायो चाहे काढि गुन लाहिबी।
जीविका हमारी जो पै औरन के कर डारो,
ब्रज के बिहारी तो तिहारी कहाँ साहिबी॥2॥
बड़ेन सों जान पहिचान कै रहीम कहा,
जो पै करतार ही न सुख देनहार है।
सीत-हर सूरज सों नेह कियो याही हेत,
ताऊ पै कमल जारि डारत तुषार है॥
नीरनिधि माँहि धस्यो शंकर के सीस बस्यो,
तऊ ना कलंक नस्यो ससि में सदा रहै।
बड़ो रीझिवार है, चकोर दरबार है,
कलानिधि सो यार तऊ चाखत अंगार है॥3॥
मोहिबो निछोहिबो सनेह में तो नयो नाहिं,
भले ही निठुर भये काहे को लजाइये॥
तन मन रावरे सो मतों के मगन हेतु,
उचरि गये ते कहा तुम्हें खोरि लाइये॥
चित लाग्यो जित जैये तितही 'रहीम' नित,
धाधवे के हित इत एक बार आइये॥
जान हुरसी उर बसी है तिहारे उर,
मोसों प्रीति बसी तऊ हँसी न कराइये॥4॥
(सवैया)
जाति हुती सखि गोहन में मन मोहन कों लखिकै ललचानो।
नागरि नारि नई ब्रज की उनहूँ नूंदलाल को रीझिबो जानो॥
जाति भई फिरि कै चितई तब भाव 'रहीम' यहै उर आनो।
ज्यों कमनैत दमानक में फिरि तीर सों मारि लै जात निसानो॥5॥
जिहि कारन बार न लाये कछू गहि संभु-सरासन दोय किया।
गये गेहहिं त्यागि के ताही समै सु निकारि पिता बनवास दिया 1।
कहे बीच 'रहीम' रर्यो न कछू जिन कीनो हुतो बिनुहार हिया।
बिधि यों न सिया रसबार सिया करबार सिया पिय सार सिया॥6॥
दीन चहैं करतार जिन्हें सुख सो तो 'रहीम' टरै नहिं टारे।
उद्यम पौरुष कीने बिना धन आवत आपुहिं हाथ पसारे॥
दैव हँसे अपनी अपनी बिधि के परपंच न जात बिचारे।
बेटा भयो वसुदेव के धाम औ दुंदुभि बाजत नंद के द्वारे॥7॥
पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै लगि लागि गयो कहुँ काहु करैटो।
हिरदै दहिबै सहिबै ही को है कहिबै को कहा कछु है गहि फेटो॥
सूधे चितै तन हा हा करें हू 'रहीम' इतो दुख जात क्यों मेटो।
ऐसे कठोर सों औ चितचोर सों कौन सी हाय घरी भई भेंटो॥8॥
कौन धौं सीख 'रहीम' इहाँ इन नैन अनोखि यै नेह की नाँधनि।
प्यारे सों पुन्यन भेंट भई यह लोक की लाज बड़ी अपराधिनि॥
स्याम सुधानिधि आनन को मरिये सखि सूँधे चितैवे की साधनि।
ओट किए रहतै न बनै कहतै न बनै बिरहानल बाधनि॥9॥
(दोहा)
धर रहसी रहसी धरम खप जासी खुरसाण।
अमर बिसंभर ऊपरै, राखो नहचौ राण॥10॥
तारायनि ससि रैन प्रति, सूर होंहि ससि गैन।
तदपि अँधेरो है सखी, पीऊ न देखे नैन॥11॥
(पद)
छबि आवन मोहनलाल की।
काछनि काछे कलित मुरलि कर पीत पिछौरी साल की॥
बंक तिलक केसर को कीने दुति मानो बिधु बाल की।
बिसरत नाहिं सखि मो मन ते चितवनि नयन बिसाल की॥
नीकी हँसनि अधर सधरनि की छबि छीनी सुमन गुलाल की।
जल सों डारि दियो पुरइन पर डोलनि मुकता माल की॥
आप मोल बिन मोलनि डोलनि बोलनि मदनगोपाल की।
यह सरूप निरखै सोइ जानै इस 'रहीम' के हाल की॥12॥
कमल-दल नैननि की उनमानि।
बिसरत नाहिं सखी मो मन ते मंद मंद मुसकानि॥
यह दसननि दुति चपला हूते महा चपल चमकानि।
बसुधा की बसकरी मधुरता सुधा-पगी बतरानि॥
चढ़ी रहे चित उर बिसाल को मुकुतमाल थहरानि।
नृत्य-समय पीतांबर हू की फहरि फहरि फहरानि।
अनुदिन श्री वृन्दाबन ब्रज ते आवन आवन जाति।
अब 'रहीम 'चित ते न टरति है सकल स्याम की बानि॥13॥