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"बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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अब हैं महरूम<ref>वंचित</ref> परिंदों की भी मेहमानी से | अब हैं महरूम<ref>वंचित</ref> परिंदों की भी मेहमानी से | ||
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मैं वही हूँ के मिरी क़द्र न जानी तुमने | मैं वही हूँ के मिरी क़द्र न जानी तुमने |
14:20, 11 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से
फ़ायदा कुछ तो हुआ बे सरो सामानी से
माँ ने स्कूल को जाती हुई बेटी से कहा
तेरी बिंदिया न गिरे देखना पेशानी<ref>माथा</ref> से
मुफ़्त में नेकियाँ मिलती थीं शजर<ref>पेड़</ref> था घर में
अब हैं महरूम<ref>वंचित</ref> परिंदों की भी मेहमानी से
रात देखो न कभी दिन का कोई पास रखो
मैं तो हारा हूँ बहुत आप की मन मानी से
मैं वही हूँ के मिरी क़द्र न जानी तुमने
अब खड़े देखते क्या हो मुझे हैरानी से
इसमें राँझाओं की नालायकि़यों का क्या है
इश्क़ जिंदा है तो बस हुस्न की क़ुर्बानी से
कोई दानाई यहाँ काम नहीं आती ’अना’
शेर कुछ अच्छे निकल आते हैं नादानी से
शब्दार्थ
<references/>