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"नानी का संदूक / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
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− | + | हुआ धुएँ से बेहद काला। | |
− | + | पीछे से वह खुल जाता है, | |
− | + | आगे लटका रहता ताला! | |
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− | + | चंदन चौकी देखी उसमें, | |
− | बाली जौ की देखी उसमें , | + | सूखी लौकी देखी उसमें, |
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− | + | खाली जगहों में है जाला, | |
− | + | नानी का संदूक निराला! | |
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− | + | शीशी गंगा जल की उसमें, | |
− | + | ताम्रपत्र, तुलसीदल उसमें, | |
− | + | चींटा, झींगुर, खटमल उसमें, | |
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− | + | जगन्नाथ का भात उबाला, | |
− | + | नानी का संदूक निराला! | |
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− | + | मिलता उसमें कागज कोरा, | |
− | + | मिलता उसमें सुई व डोरा, | |
− | + | मिलता उसमें सीप-कटोरा, | |
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− | + | मिलती उसमें कौड़ी माला, | |
− | + | नानी का संदूक निराला! | |
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− | + | ''-साभार: नंदन, अगस्त 1993, 32'' | |
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16:27, 21 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
नानी का संदूक निराला,
हुआ धुएँ से बेहद काला।
पीछे से वह खुल जाता है,
आगे लटका रहता ताला!
चंदन चौकी देखी उसमें,
सूखी लौकी देखी उसमें,
बाली जौ की देखी उसमें,
खाली जगहों में है जाला,
नानी का संदूक निराला!
शीशी गंगा जल की उसमें,
ताम्रपत्र, तुलसीदल उसमें,
चींटा, झींगुर, खटमल उसमें,
जगन्नाथ का भात उबाला,
नानी का संदूक निराला!
मिलता उसमें कागज कोरा,
मिलता उसमें सुई व डोरा,
मिलता उसमें सीप-कटोरा,
मिलती उसमें कौड़ी माला,
नानी का संदूक निराला!
-साभार: नंदन, अगस्त 1993, 32