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"सुनते-सुनते लोरी / उषा यादव" के अवतरणों में अंतर

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चांदनी ने चांदी की
चादर बिछा दी,
पेड़-पौधे सोए, हुई
रात की मुनादी।
पलकों को मूंद, तू भी
सो जा मेरी लाडली।
नाजों से पली हुई
घर की बगिया की कली!
ना, ना, बुरी बात है
कहना न मानना,
चाव से झुलाए तुझे
आज बुआ पालना।
कमरे में उतर आई
चांदनिया गोरी,
तूने भी पलकें मूंदीं,
सुनते-सुनते लोरी।