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"हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br> | सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br> | ||
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17:33, 25 जुलाई 2008 के समय का अवतरण
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।