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"सीर रो घर / वासु आचार्य" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=वासु आचार्य
 
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|नाम=सीर रो घर
<Poem>
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|रचनाकार=[[वासु आचार्य]]
लारलै-
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|प्रकाशक=
केई बरसां सूं
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|वर्ष=
म्हैं म्हारै
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|भाषा=राजस्थानी
पुरखां रै घर नैं
+
|विषय=कविता 
ताकतो रैवूं- घणी बार
+
|शैली=
 
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|पृष्ठ=
म्हनैं लखावै
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|ISBN=
घर भी पाछो ताकै है
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|विविध=“सीर रो घर” पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार
निजर पसार
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}}
 
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*[[सीर रो घर (कविता) / वासु आचार्य]]
दिन रै उजाळै में
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घर कीं नीं बोलै
+
माइतां री-
+
माण मरजाद रो
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म्हासूं बत्तो औ सैनाण
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भूत ज्यूं खड़्यो
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घर सूं-
+
‘ढूंढो’ बणतो
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रात रै अंधारै में
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डुसका भरतो-
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आपरो मुंडो खोलै
+
 
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गूंजण लागै
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म्हारै कानां में
+
दरद भरिया दरदीला बोल
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तूं- क्यूं-
+
फाड़तो रैवै आंख्यां
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म्हारै कानी
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क्यूं कुचरै है- म्हारा घाव
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अर क्यूं लेवै है-
+
म्हारो पाणी
+
 
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घर जणै थोड़ो थमै
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अर फेर बोलै-
+
 
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और भी तो हा-
+
छोड़ग्या
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नीं ठाह क्यूं गया
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नीं साळ-संभाळ
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नीं बोल-बतळावण
+
म्हैं झर रैयो हूं-
+
गळ रैयो हूं- मांय रो मांय
+
 
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कांई बखत हो-
+
कै आसै-पासै रा लोग
+
निसरता हा- म्हनैं
+
माथो झुकाय
+
 
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कांई बखत है-
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निसर जावै
+
नसड़ी झुकाय
+
माइतां नै सायत
+
ठाह नीं हो
+
कै म्हैं बां रै पाछै
+
हुय जाऊंला- सीर रो घर
+
अर होऊंला जीर-जीर
+
म्हारै ही लाडला री
+
बेरूखी सूं
+
 
+
घर रो जाणै
+
गळो रूंधग्यो
+
चुपचाप बैवण लागगी
+
आंसुवां री धार
+
 
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म्हैं नीं दे सक्यो
+
पाछो कोई पडूत्तर
+
 
+
म्हारै रूं-रूं में फैलगी
+
चीस्याड़ां
+
बिलखतै माइतां री
+
 
+
म्हनै लखायो-
+
म्हारै पुरखां रो घर
+
घर नीं है
+
चीखता-चिंघाड़ता माइत है
+
जिणां नैं भारिया बुढ़ापै में
+
सुगार फैंक दिया है
+
उणां रा ही लाडेसर
+
 
+
म्हैं- फेर ताकूं हूं
+
चुपचाप-
+
पुरखां रै चिणायै म्हारै घर नैं
+
सीर रै घर नैं।</poem>
+

07:26, 30 अक्टूबर 2015 का अवतरण

सीर रो घर
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रचनाकार वासु आचार्य
प्रकाशक
वर्ष
भाषा राजस्थानी
विषय कविता
विधा
पृष्ठ
ISBN
विविध “सीर रो घर” पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।