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"औरत को मार दिया / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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पंजों के बल उचकती है
+
तुमने रूप रंग
कभी चढ़ जाती है
+
संगीत शब्द उठा लिया
स्टूल, तिपाई या मेज पर
+
और औरत को मार दिया
होने के लिए जमीन से कुछ बालिश्त ऊँचा
+
तुमने चमकीली रंगीन दीवारों
ताकि समेट सके उनको भी
+
और रोशनियों के बीच
जो हैं पहुँच से बाहर उसके
+
सुन्दर चेहरे
कमर में आँचल खोंसे
+
और शरीर को सजा दिया
मुँह में भरे कुनेन
+
और औरत को मार दिया
माथे पर देकर बल
+
तुमने माँ, बहन, बेटी
जब उठाती है वह लक्ष्य भेदी झाडू
+
प्रेमिका, पत्नी की
आकाश सरक जाता है
+
खूबसूरत चादर ओढ़ा दी
थोड़ा और ऊपर
+
और औरत को मार दिया।
धरती धसक जाती है नीचे जरा और
+
मजबूती से बने तार
+
हो जाते हैं तार-तार
+
उसके मजबूत इरादों के आगे
+
उन्हें वह बेहद पसन्द है
+
बहुत पुराना साथ है उनका
+
पर वे उसे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते
+
उसकी रात उनके सपनों से खत्म होती है
+
और सुबह उनकी तलाश से
+
वे भी कम खिलंदड़े नहीं खेलते हैं उससे
+
लुका-छिपी का खेल
+
छिपने के लिए नयी से नयी जगह तलाश लेते हैं
+
तलधर...कानों, मर्तबानों...कुर्सियों, पलंग के नीचे, मशीनों
+
ग्रन्थों ही नहीं वे तो जा छिपते हैं देवताओं के पीछे भी
+
फिर भी छिप नहीं पाते उसकी तेज निगाहों से
+
शरण देने वाले देवता बेचारे भी
+
खा जाते हैं झाडू की दो-चार मार
+
नेस्तनाबूद करके ही लेगी दम वह
+
उन जालों को
+
जो जड़ जमाए बैठे हैं
+
घरों
+
संस्कारों
+
ग्रन्थों
+
और पूरी शताब्दी में।
+
 
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00:23, 8 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

तुमने रूप रंग
संगीत शब्द उठा लिया
और औरत को मार दिया
तुमने चमकीली रंगीन दीवारों
और रोशनियों के बीच
सुन्दर चेहरे
और शरीर को सजा दिया
और औरत को मार दिया
तुमने माँ, बहन, बेटी
प्रेमिका, पत्नी की
खूबसूरत चादर ओढ़ा दी
और औरत को मार दिया।