"चुभती-चुभती सी ये कैसी पेड़ों से है उतरी धूप / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=गौतम राजरिशी | |रचनाकार=गौतम राजरिशी | ||
− | + | |संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी | |
− | |संग्रह= | + | |
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 26: | ||
घर आया है फौजी, जब से थमी है गोली सीमा पर | घर आया है फौजी, जब से थमी है गोली सीमा पर | ||
देर तलक अब छत के ऊपर सोती तान मसहरी धूप | देर तलक अब छत के ऊपर सोती तान मसहरी धूप | ||
− | + | ||
+ | |||
+ | (मासिक हंस-सितम्बर 2009, लफ़्ज़-सितम्बर 2011) |
21:13, 28 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
चुभती-चुभती सी ये कैसी पेड़ों से है उतरी धूप
आंगन-आंगन धीरे-धीरे फैली इस दोपहरी धूप
गर्मी की छुट्टी आयी तो गाँवों में फिर महके आम
चौपालों पर चूसे गुठली चुकमुक बैठी शहरी धूप
ज़िक्र उठा है मंदिर-मस्जिद का फिर से अखबारों में
आज सुब्ह से बस्ती में है सहमी-सहमी बिखरी धूप
बड़के ने जब चुपके-चुपके कुछ खेतों की काटी मेंड़
आये-जाये छुटके के संग अब तो रोज़ कचहरी धूप
झुग्गी-झोंपड़ पहुंचे कैसे, जब सारी-की-सारी हो
ऊँचे-ऊँचे महलों में ही छितरी-छितरी पसरी धूप
बाबूजी हैं असमंजस में, छाता लें या रहने दें
जीभ दिखाये लुक-छिप लुक-छिप बादल में चितकबरी धूप
घर आया है फौजी, जब से थमी है गोली सीमा पर
देर तलक अब छत के ऊपर सोती तान मसहरी धूप
(मासिक हंस-सितम्बर 2009, लफ़्ज़-सितम्बर 2011)