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"प्रार्थना - 3 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर

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पालै जग सकल सदाहीं जगदीस जोई,
सिरजत सहजहीं त्यों चाहि चित छन मैं।
दूध दधि चाखन को जाँचै ग्वालनीन ढिग,
नाचै दिखराय रुचि रंचक माखन मैं॥
प्रेमघन पूजत सुरेस औ महेस सिद्धि,
नारद मुनीस जाहि ध्यावैं सदा मन मैं।
गोकुल मैं सोई ह्वै गुपाल गऊ लोक वासी,
गैयन चरावत बिलोको वृन्दावन मैं।