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"दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-इमाँ होना / बृज नारायण चकबस्त" के अवतरणों में अंतर

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दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-इमाँ होना
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नौ-गिरफ़्तार-ए-बला तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ क्या जानें
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कोई नाशाद सिखा दे इन्हें नालाँ होना
  
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रह के दुनिया में यूँ तर्क-ए-हवस की कोशिश
कोई नाशाद सिखा दे इन्हें नालाँ होना <br><br>
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जिस तरह् अपने ही साये से गुरेज़ाँ होना
  
रह के दुनिया में यूँ तर्क-ए-हवस की कोशिश <br>
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ज़िन्दगी क्या है अनासिर् में ज़हूर्-ए-तर्तीब्
जिस तरह् अपने ही साये से गुरेज़ाँ होना <br><br>
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मौत क्य है इन्हीं इज्ज़ा का परेशाँ होना
  
ज़िन्दगी क्या है अनासिर् में ज़हूर्-ए-तर्तीब् <br>
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दिल असीरी में भी आज़ाद है आज़ादों का
मौत क्य है इन्हीं इज्ज़ा का परेशाँ होना <br><br>
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वल्वलों के लिये मुम्किन नहीं ज़िन्दा होना
  
दिल असीरी में भी आज़ाद है आज़ादों का <br>
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गुल को पामाल न कर लाल-ओ-गौहर के मालिक
वल्वलों के लिये मुम्किन नहीं ज़िन्दा होना <br><br>
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है इसे तुराह-ए-दस्तार-ए-ग़रीबाँ होना
  
गुल को पामाल न कर लाल-ओ-गौहर के मालिक <br>
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है मेरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़कर
है इसे तुराह-ए-दस्तार-ए-ग़रीबाँ होना <br><br>
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नंग है मेरे लिये चाक गरेबाँ होना
 
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है मेरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़कर<br>
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नंग है मेरे लिये चाक गरेबाँ होना <br><br>
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11:41, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

दर्द-ए-दिल पास-ए-वफ़ा जज़्बा-ए-इमाँ होना
आदमियत यही है और यही इन्साँ होआ

नौ-गिरफ़्तार-ए-बला तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ क्या जानें
कोई नाशाद सिखा दे इन्हें नालाँ होना

रह के दुनिया में यूँ तर्क-ए-हवस की कोशिश
जिस तरह् अपने ही साये से गुरेज़ाँ होना

ज़िन्दगी क्या है अनासिर् में ज़हूर्-ए-तर्तीब्
मौत क्य है इन्हीं इज्ज़ा का परेशाँ होना

दिल असीरी में भी आज़ाद है आज़ादों का
वल्वलों के लिये मुम्किन नहीं ज़िन्दा होना

गुल को पामाल न कर लाल-ओ-गौहर के मालिक
है इसे तुराह-ए-दस्तार-ए-ग़रीबाँ होना

है मेरा ज़ब्त-ए-जुनूँ जोश-ए-जुनूँ से बढ़कर
नंग है मेरे लिये चाक गरेबाँ होना