भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यह भी दिन बीत गया / रामदरश मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGeet}} | {{KKCatGeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | यह भी दिन बीत | + | यह भी दिन बीत गया |
पता नहीं जीवन का यह घड़ा | पता नहीं जीवन का यह घड़ा | ||
एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया। | एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया। | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
किसके ये टूटे जलयान यहाँ आ लगे | किसके ये टूटे जलयान यहाँ आ लगे | ||
पता नहीं बहता तट आज का | पता नहीं बहता तट आज का | ||
− | + | तोड़ गया प्रीति या कि जोड़ नए मीत गया। | |
एक लहर और इसी धारा में बह गई | एक लहर और इसी धारा में बह गई | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
पता नहीं दोनों के मौन में | पता नहीं दोनों के मौन में | ||
कौन कहाँ हार गया, कौन कहाँ जीत गया। | कौन कहाँ हार गया, कौन कहाँ जीत गया। | ||
+ | |||
+ | यह भी दिन बीत गया | ||
+ | पता नहीं जीवन का यह घड़ा | ||
+ | एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया। | ||
</poem> | </poem> |
10:47, 7 अप्रैल 2016 के समय का अवतरण
यह भी दिन बीत गया
पता नहीं जीवन का यह घड़ा
एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया।
उठा कहीं, गिरा कहीं, पाया कुछ खो दिया
बँधा कहीं, खुला कहीं, हँसा कहीं, रो दिया।
पता नहीं इन घड़ियों का हिया
आँसू बन ढलकाया कुल का बन गीत गया।
इस तट लगने वाले और कहीं जा लगे
किसके ये टूटे जलयान यहाँ आ लगे
पता नहीं बहता तट आज का
तोड़ गया प्रीति या कि जोड़ नए मीत गया।
एक लहर और इसी धारा में बह गई
एक आस यों ही बंशी डाले रह गई
पता नहीं दोनों के मौन में
कौन कहाँ हार गया, कौन कहाँ जीत गया।
यह भी दिन बीत गया
पता नहीं जीवन का यह घड़ा
एक बूँद भरा या कि एक बूँद रीत गया।