"झील से प्यार करते हुए–1 / शरद कोकास" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> झील की ज़ुबान उग आई …) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=शरद कोकास | |रचनाकार=शरद कोकास | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=गुनगुनी धूप में बैठकर / शरद कोकास |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
नाजायज़ प्रेम से | नाजायज़ प्रेम से | ||
वे ईर्ष्या करते होंगे | वे ईर्ष्या करते होंगे | ||
− | |||
वे चाहते होंगे | वे चाहते होंगे | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 31: | ||
मै उसमें झाँक कर | मै उसमें झाँक कर | ||
अपना चेहरा देखना चाहता हूँ | अपना चेहरा देखना चाहता हूँ | ||
− | |||
बादलों के कहकहे | बादलों के कहकहे |
20:36, 1 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
झील की ज़ुबान उग आई है
झील ने मनाही दी है अपने पास बैठने की
झील के मन में है ढेर सारी नफ़रत
उन कंकरों के प्रति
जो हलचल पैदा करते हैं
उसकी ज़ाती ज़िन्दगी में
झील की आँखें होतीं तो देखती शायद
मेरे हाथों में क़लम है कंकर नहीं
झील के कान उग आए हैं
बातें सुनकर
पास से गुज़रने वाले
आदमक़द जानवरों की
मेरे और झील के बीच उपजे
नाजायज़ प्रेम से
वे ईर्ष्या करते होंगे
वे चाहते होंगे
कोई इल्ज़ाम मढ़ना
झील के निर्मल जल पर
झील की सतह पर जमी है
ख़ामोशी की काई
झील नहीं जानती
मै उसमें झाँक कर
अपना चेहरा देखना चाहता हूँ
बादलों के कहकहे
मेरे भीतर जन्म दे रहे हैं
एक नमकीन झील को
आश्चर्य नहीं यदि मैं एक दिन
नमक के बड़े से पहाड़ में तब्दील हो जाऊँ ।