भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सिवपूजा / पतझड़ / श्रीउमेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:14, 2 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

दिनभर आज उपास रखी केॅ, सिव-पूजा होतै भरपूर।
चारोपहर रात-भर होतै-पूजा, चढ़तै आँक धथूर॥
क्वारी लड़कीं पूजै छै, ई कही-कही केामल वानी।
”हमरा अच्छा बोॅर दिहोॅ हे सिवसंकर ओढर दानी॥
ढोल ढाक, तुतरु सें गम-गम करै रहै हमरोॅ अस्थान।
पतझड़ के मनहूस दिनों में लागै छै सब कुछ बेजान॥