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"अश्क़ में ढल के निकलता क्यों है / सिया सचदेव" के अवतरणों में अंतर

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अपनी पलकों पे मेरे अश्क़ सजाते जाओ
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अश्क़ में ढल के निकलता क्यों है
दूर रह कर  भी मुझे अपना बनाते जाओ
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दर्द ये क़ल्ब में पलता क्यों है
  
रोशनी के लिए मैं भी हूँ परेशां लेकिन
+
जबकि फ़ानी है जहाँ की हर चीज़
ये ज़रुरी तो नहीं आग लगाते जाओ
+
फिर ये इंसान मचलता क्यों है
  
मिल गया भेस में इन्सां के फ़रिश्ता कोई
+
कोई तो है जो बचाता है उसे
बात ये सारे ज़माने को बताते जाओ
+
वर्ना फिर  गिर के सम्भलता क्यों है
  
इस भरी दुनिया में कोई तो है मेरा अपना
+
तुम न समझोगे दिया  मिट्टी का
साथ हो तुम मेरे एहसास दिलाते जाओ
+
तेज़ आँधी में भी जलता क्यों है
  
ये मोहब्बत का तक़ाज़ा तो नहीं है फिर भी
+
जान बाक़ी न हो दीपक में तो फिर
जाते जाते कोई एहसान जताते जाओ
+
ये धुवाँ उससे निकलता क्यों है
+
इश्क़ ए रुसवा मुझे बाज़ार में ले आया है  
+
तुम भी औरों की तरह दाम लगाते जाओ 
+
  
हक़परस्तों से गुज़ारिश है यही एक सिया
+
वो जो आता है मुहाफ़िज़ बन कर
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाते जाओ
+
वो दरिन्दे में बदलता क्यों है
 
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03:25, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

अश्क़ में ढल के निकलता क्यों है
दर्द ये क़ल्ब में पलता क्यों है

जबकि फ़ानी है जहाँ की हर चीज़
फिर ये इंसान मचलता क्यों है

कोई तो है जो बचाता है उसे
वर्ना फिर गिर के सम्भलता क्यों है

तुम न समझोगे दिया मिट्टी का
तेज़ आँधी में भी जलता क्यों है

जान बाक़ी न हो दीपक में तो फिर
ये धुवाँ उससे निकलता क्यों है

वो जो आता है मुहाफ़िज़ बन कर
वो दरिन्दे में बदलता क्यों है