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"प्यारे का पंथ / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

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छोड़े सुत नारी तात भ्रात गोत नात, झूठ न सोहात बात कै विवेक बोलहीँ।
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त्यागि घर वार लोक-चार मया मोह, जारि, धरनी विना विकार सार वैन वोलहीं।
काम गये वोध भये शील वो संतोष लये, कर्म वीज भूँजि वोये कायमें कलोलहीं॥
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जीव-दया जीवन धरि हियामें हुलास करि, हीरा मणि मोती झरे मोलके अमोल हीं॥
धरनी हिये सोहात सांईके सुरंग रात, रावरंक ते निशंक तौलि तौलि मोलही।
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अनसुनी सुनहि अदेख देख देखि कँह, अगम को सुगम अखोल द्वार खोलहीं।
काहुते न वैरना न काहुते सनेहता हि, प्यारे के पियार से नियारे पंथ डोलहीँ॥27॥
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वावरे वेचारे मनियारे मतवारे भगे, प्यारे की॥28॥
 
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11:12, 21 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

त्यागि घर वार लोक-चार मया मोह, जारि, धरनी विना विकार सार वैन वोलहीं।
जीव-दया जीवन धरि हियामें हुलास करि, हीरा मणि मोती झरे मोलके अमोल हीं॥
अनसुनी सुनहि अदेख देख देखि कँह, अगम को सुगम अखोल द्वार खोलहीं।
वावरे वेचारे मनियारे मतवारे भगे, प्यारे की॥28॥