"अंग दर्पण / भाग 8 / रसलीन" के अवतरणों में अंतर
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08:04, 22 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
रसना-वर्णन
नाव सप्तसुर सिंधु की बचन मुक्ति की सीप।
कै रसना सब रसन की पोथी गिरा समीप॥80॥
वाणी-वर्णन
अद्भुत रानी परत तुव मधुबानी स्रुति माँहि।
सब ग्यानी ठवरे रहै पानी माँगत नाँहि॥81॥
अगर अतर के नगर में कहूँ रही नहिं चाह।
बगर बगर सब डगर में तुव मुख बास प्रवाह॥82॥
नथ मुकुतन के झलक में मो मन लह्यो प्रकास।
करत नाकबासी मुकुत आसु तिया मुख बास॥83॥
चिबुक-वर्णन
आए ठोढ़ी सर करन बवरे अम्ब निदान।
कोई जर कोइर भए, कोइ सुख पाक पिरान॥84॥
चिबुक-गाड़-वर्णन
मन पारा दृग कूप तें उफन बाल मुख छाहि।
परयो चिबुक के गाड़ में, कबहूँ निबरत नाहिं॥85॥
चिबुक-तिल वर्णन
अंध भवन जल में धसें जे हरि केलि निधान।
तीय चिबुक तिलफे परें लागे चुबकी खान॥86॥
होम कुंड तुव नाभि पर धूम रोम की रेख।
ताहि कालिमा देखि के चिबुक माह तिल भेख॥87॥
मुख मण्डल-वर्णन
नैन छके अति ही लखे तिय तुव बदन उदोत।
याके दीपत दीप ही फूंक मुकुर मुख होत॥88॥
कवन जोति नैनन लगे वा सुन्दरि मुख तूल।
या दीपत में होत है, चन्द चांदनी फूल॥86॥
नहिं मृगंक भू अंक यह नहिं कलंक रजनीस।
तुव मुख लखि हारी कियों, घसि घसि कारी सीस॥90॥
चन्द नहीं यह बाल मुख, सोभा देखन काज।
बारी कारी रैन मों महताबी द्विजराज॥91॥