भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झलकै अति सुन्दर आनन गौर / घनानंद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:सवैया]]
 
[[Category:सवैया]]
 
+
<poem>
::::'''सवैया'''<br><br>
+
झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै।
झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै।<br>
+
हँसि बोलनि मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।
हँसि बोलन मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।<br>
+
लट लोल कपोल कलोल करैं, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।
लट लोल कपोल कलोल करै, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।<br>
+
अंग अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अबै धर च्वै।।4।।</poem>
अंग अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अवै धर च्वै।।2।।<br>
+

06:35, 23 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै।
हँसि बोलनि मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।
लट लोल कपोल कलोल करैं, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।
अंग अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अबै धर च्वै।।4।।