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"पोखिएर घामको झुल्का भरि संघारमा / हरिभक्त कटुवाल" के अवतरणों में अंतर
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| − | पोखिएर घामको | + | पोखिएर घामको झुल्काभरि सङ्घारमा |
| − | तिम्रो जिन्दगीको ढोका खोलूँ-खोलूँ लाग्छ | + | तिम्रो जिन्दगीको ढोका खोलूँ-खोलूँ लाग्छ है |
| − | सयपत्री फूलसितै | + | सयपत्री फूलसितै फक्री आँगनमा |
| − | बतासको भाका टिपी बोलूँ-बोलूँ लाग्छ है | + | बतासको भाका टिपी बोलूँ-बोलूँ लाग्छ है |
| − | कति-कति | + | |
| − | परेलीमा बास माग्न कति आँखा | + | कति-कति आँखाहरू बाटो छेक्न आँउछन् |
| − | यति धेरै मानिसका यति धेरै आँखाहरू | + | परेलीमा बास माग्न कति आँखा धाँउछन् |
| − | मलाई भने तिम्रै आँखा रोजूँ-रोजूँ लाग्छ | + | यति धेरै मानिसका यति धेरै आँखाहरू |
| − | + | मलाई भने तिम्रै आँखा रोजूँ-रोजूँ लाग्छ है | |
| − | मनको | + | |
| − | + | उडूँ-उँडू लाग्छ किन, प्वाँख कहिले पलायो | |
| − | + | मनको शान्त तलाउको पानी कसले चलायो | |
| + | आफैँलाई थाह छैन कसलाई थाह होला | ||
| + | त्यसैले त तिमीसँग सोधूँ-सोधूँ लाग्छ है | ||
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09:29, 30 जुलाई 2016 का अवतरण
पोखिएर घामको झुल्काभरि सङ्घारमा
तिम्रो जिन्दगीको ढोका खोलूँ-खोलूँ लाग्छ है
सयपत्री फूलसितै फक्री आँगनमा
बतासको भाका टिपी बोलूँ-बोलूँ लाग्छ है
कति-कति आँखाहरू बाटो छेक्न आँउछन्
परेलीमा बास माग्न कति आँखा धाँउछन्
यति धेरै मानिसका यति धेरै आँखाहरू
मलाई भने तिम्रै आँखा रोजूँ-रोजूँ लाग्छ है
उडूँ-उँडू लाग्छ किन, प्वाँख कहिले पलायो
मनको शान्त तलाउको पानी कसले चलायो
आफैँलाई थाह छैन कसलाई थाह होला
त्यसैले त तिमीसँग सोधूँ-सोधूँ लाग्छ है
